भारत-बांग्लादेश सीमा पर रोहिंग्या शरणार्थियों को रोकना आसान नहीं
भारत-बांग्लादेश सीमा पर लगभग 150 संवेदनशील जगहों को चिन्हित किए जाने के साथ अवैध रूप से भारत आने वाले रोहिंग्याओं को रोकने में बीएसएफ के करीब 85000 जवानों की चुनौती काफी बढ गई है। इलाके के भौगोलिक स्वरूप के अलावा भी उनके सामने कई चुनौतियां हैं। अगस्त 2012 में बांग्लादेश के कॉक्स बाजार के एक परिवार के सात लोग भारत-बांग्लादेश सीमा तक आने के लिए एक बस में सवार हुए। योजना यह थी कि रात में वे भारतीय सीमा में दाखिल हो जाएंगे। वे लोग म्यांमार के रखाइन प्रांत के जातीय समुदाय रोहिंग्या से ताल्लुक रखते थे।
उनके दलाल ने उन्हें फोन पर बताया था कि उन्हें तीन तरह के लोगों से मदद मिलेगी। एक ग्रुप उन्हें बॉर्डर के पास बांग्लादेश में एक गांव तक ले जाने वाला था, दूसरा उन्हें पश्चिम बंगाल में ले जाता और तीसरा फिर उन्हें कोलकाता जाने वाली एक ट्रेन में बैठा देता। इसमें उन्हें हर व्यक्ति पर 10000 टका यानी 8000 रुपये चुकाने थे। हालांकि दलाल ने आगाह किया था कि पकड़े गए तो कोई मदद नहीं मिलेगी। वह परिवार सात साल पहले म्यांमार में बौद्धों के दबदबे वाली सरकार की प्रताडना के बाद म्यांमार से बांग्लादेश चला गया था।
रखाइन प्रांत में बौद्धों और मुसलमानों के बीच हिंसा तेज होने के बाद म्यांमार से लोगों का पलायन नए सिरे से शुरू हुआ तो बांग्लादेश में भी पुलिस ने रोहिंग्या शरणार्थियों पर सख्ती बरतनी शुरू कर दी थी। निर्देश के अनुसार, वे सातों लोग बांग्लादेश की पश्चिमी सीमा के पास एक गांव से कुछ मील पहले बस से उतर गए थे। अगले छह घंटों में उनका पहला गाइड उन्हें पतले नालों और धान के खेतों के बीच से होते हुए घने पेड़ों के बीच एक झोपड़ी पर छोड़ गया। दोपहर बाद ढाई बजे के आसपास दो लोग आए और तैयार रहने को कहा।
उन्होंने कहा कि बॉर्डर पर तैनात गार्डों की पाली बदलने वाली है और इस बीच 30 मिनट का समय है। अब नई दिल्ली के रिफ्यूजी कैंप में रह रहे मौंग श्वे (नाम परिवर्तित) बताते हैं, ‘बड़ा डरावना माहौल था। मुझे लगा था कि वह हमारी आखिरी रात होगी।’ हालांकि उन दोनों व्यक्तियों के आने के दस मिनट बाद सातों लोग भारतीय सीमा में पहुंच गए और फिर अगली शाम उन्हें टैक्सी से कोलकाता और ट्रेन से नई दिल्ली पहुंचा दिया गया। श्वे ने बताया, ‘वहां बॉर्डर जैसा कुछ लगा ही नहीं।’ श्वे को वहां कोई बाड़ नहीं दिखी और न ही कोई सुरक्षाकर्मी। उन्होंने बताया, ‘हमारे सभी गाइड लोकल थे। ऐसा लग रहा था कि उन्हें इन चीजों की आदत हो गई है।’
इंडिया में कई इलाकों में रह रहे रोहिंग्या समुदाय के लोगों की कहानी लगभग इसी तरह की है। बांग्लादेश के साथ भारत की 4096 किमी़ लंबी सीमा है। इसके आधे हिस्से में ही बाड़ लगी है। करीब 2117 किमी़ लंबी सीमा वेस्ट बंगाल में है और वहां से घुसपैठियों का आना आम है। पिछले साल सरकार ने राज्यसभा को बताया था कि करीब 2 करोड़ बांग्लादेशी भारत में अवैध रूप से रह रहे हैं। वहीं भारत में रह रहे रोहिंग्या समुदाय के लोगों की तादाद करीब 40000 है, जिनमें से अधिकतर नई दिल्ली, जम्मू, हैदराबाद और जयपुर में अस्थायी शिविरों में हैं। इनकी संख्या भले ही कम हो, लेकिन उनकी मौजूदगी से एक कानूनी, कूटनीतिक और राजनीतिक रस्साकशी शुरू हो गई है।
इस समाचार से कुछ सत्र ध्यान में आते है..
१. जिस तरह इन ७ लोगों ने भारतीय सीमा में प्रवेश किया उसी तरह हजारों-लाखों की संख्या में बांग्लादेशी एवं रोहिंग्याआें ने अब तक भारत में प्रवेश किया है । यह आज तक के सभी सरकारों की एक बडी असफलता है कि, सीमा के क्षेत्र में सक्त निगरानी नहीं होती । भारत-बांग्लादेश सीमा काफी लंबी है तो उसके लिए भारत ने सैनिक बलों को तैनात करने का व्यवस्थापन काफी गंभीरता आैर नियोजनपूर्वक करना चाहिए।
२. सभी को ज्ञात ही है कि, आज भारत में अवैध बांग्लादेशी तथा रोहिंग्या देश की सुरक्षा के लिए कितना खतरा बने हुए है । कर्इ घटनाआे में यह सामने आया है । एेसा होते हुए भी सीमा पर इस तरह की ढिलार्इ रखना यह देश की लिए एक बडी गंभीर समस्या का विषय है ।
३. साथ ही सरकार ने इन घुसपैठियों को सीमा पार ले जाने के लिए मदद करनेवालों पर सक्त कारवार्इ करनी चाहिए । सरकार ने अब जागृत होकर इस विषय की आेर गंभीरता से ध्यान देकर सीमा पर आवश्यक बल तैनात कर अवैध घुसपैठ रोकनी चाहिए ।
४. सभी राष्ट्रप्रेमी नागरिकों को अब संगठित होकर भारत सरकार से यह मांग करनी चाहिए की रोहिंग्या मुसलमानों के साथ साथ अवैध बांग्लादेशी घुसपैठिये तथा रोहिंग्या मुसलमानों का समर्थन करनेवालों को भी इस देश से बाहर निकाल देना चाहिए । नहीं तो यह लोग भविष्य में हमारे अस्तित्व पर ही संकट ला सकते है, यह सभी ध्यान में रखे ।
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