पाकिस्तान समर्थित आतंकी संगठनों ने जम्मू-कश्मीर में अपने ना-पाक मंसूबे पूरे करने के लिए अब भोले-भाले स्कूली बच्चों का सहारा लेना शुरू कर दी है। सुरक्षा एवं जांच एजेंसियों ने इस मामले में एक बडे नेक्सस का पर्दाफाश किया है। जम्मू-कश्मीर के १७८ हायर सेकेंडरी स्कूल और ४१ हाईस्कूल ऐसे मिले हैं, जहां आतंकी संगठन अपने स्लीपर सेल के जरिए बच्चों को गुमराह कर आतंक के रास्ते पर ले जाने का प्रयास कर रहे हैं। फोन टैपिंग के जरिए जो बातें सामने आई हैं, उसके अनुसार इस नेक्सस में स्कूल के अध्यापक, चतुर्थ श्रेणी स्टाफ और पांच सरकारी विभाग, वन, लोक निर्माण, श्रम विभाग, मंडी और परिवहन शामिल हैं। आतंकी संगठनों ने सभी स्कूल में स्लीपर सेल के लिए अलग-अलग कोड जारी किए हैं। नाबालिगों को भारतीय सुरक्षाबलों के खिलाफ भडका कर उन्हें पहली किश्त के तौर १५ सौ रुपये भी देते हैं।
इस तरह हुआ आतंकी संगठनों की ना-पाक हरकत का पर्दाफाश
पुलवामा हमले के बाद सुरक्षाबलों ने कश्मीर में बडा सर्च ऑपरेशन शुरू किया था। चप्पे-चप्पे पर नजर रखी गई। उसके बाद भी आतंकी घटनाएं होती रही। सुरक्षाबलों को यह समझ नहीं आ रहा था कि उनकी आवाजाही और सर्च ऑपरेशन की सूचनाएं आतंकियों तक कैसे पहुंच रही हैं। आतंकियों को हथियार-गोला बारुद और दूसरी मदद भी मिल रही है।
एनआईए ने पुलवामा हमले की जांच के दौरान पता लगाया कि जम्मू कश्मीर में पाकिस्तानी आतंकियों के बडे पैमाने पर स्लीपर सेल मौजूद हैं। हालांकि लश्कर-ए-तैयबा, हिजबुल मुजाहिदीन, जैश-ए-मोहम्मद और हरकत-उल-जिहाद अल-इस्लामी, जैसे आतंकी संगठनों व उनके स्लीपर सेल का अंदेशा तो जांच एजेंसियों को पहले भी था, परंतु स्कूली बच्चों का उपयोग, यह एक राज ही बना हुआ था। दो सप्ताह पहले जांच एजेंसियों ने इस बाबत गृह मंत्रालय को एक रिपोर्ट भी सौंपी है।
बच्चों से कहा जाता है बैग में हर वक्त आधार कार्ड साथ रखें
जांच एजेंसियों के अधिकारियों का कहना है कि आतंकी संगठन स्कूली बच्चों को नाबालिग होने की वजह से अपना स्लीपर सेल बना रहे हैं। वे जानते हैं कि अगर सौ बच्चों में से बीस बच्चे भी लंबे समय तक आतंकी संगठन के साथ जुडे रहे तो वे सुरक्षाबलों को भारी नुकसान पहुंचा सकते हैं। चूंकि ये नाबालिग हैं, इन पर किसी को शक नहीं होगा और ये पकडे गए तो जुवेनाइल एक्ट में जल्द छूट जाएंगे। इसके अलावा स्कूली बच्चों को अपने इलाके में हर जगह का पता होता है।
आतंकियों की ऐसी सोच है कि बच्चों को जो भी काम सौंपा जाएगा, वे उसे आसानी से पूरा कर देंगे। पिछले माह जम्मू में बस अड्डे पर जो ग्रेनेड फेंका गया था, उसमें ऐसे ही बच्चों का उपयोग किया गया था। हालांकि पुलिस अभी उनके दस्तावेज जांच रही है। जम्मू-कश्मीर में स्लीपर सेल को धन की मदद देने वाले कथित अलगाववादी एवं दूसरे असामाजिक तत्व बच्चों के आधार कार्ड की फोटो प्रति उनके बैग में डलवा देते हैं। जो कॉल इंटरसेप्ट की गई, उसमें पाकिस्तान से आतंकी संगठन का एक सदस्य कह रहा है कि बच्चों को जिहाद की जानकारी देनी शुरू करो। स्कूल के बाद उन्हें खेल के बहाने जंगल या दूसरी किसी सुनसान जगह पर बुलाओ। अगर पैसे कम पड रहे हों तो स्लीपर सेल कोड वर्ड (साहबजादा) को बोल देना। बच्चों को जेहाद के यंत्र (कोड वर्ड) यानी हथियारों की जानकारी भी दे दो।
जो छात्र हायर सेकेंडरी स्तर पर हैं, उन्हें हर माह एक तय राशि दी जाए। बच्चों को एक छोटी सी पुस्तिका भी दी जाती है, जिसमें आतंकी संगठन खुद के बारे में बताते हैं। वे खुद को कश्मीर के लोगों का साथ देने वाले बताते हैं। जम्मू-कश्मीर पुलिस के एक अधिकारी का कहना है कि पाकिस्तान का इन बच्चों को आतंक की राह पर ले जाने का उद्देश बडा साफ है। अगर कभी इन बच्चों ने किसी बडी वारदात को अंजाम दिया या आतंकियों की मदद की तो अंतरराष्ट्रीय स्तर पर यह कहा जा सकेगा कि इसमें पाकिस्तान का हाथ नहीं है। ये सब भारतीय बच्चे हैं।
इन जिलों के स्कूलों में मौजूद हैं आतंकी संगठनों के स्लीपर सेल
अनंतनाग-२५ स्कूल, बांदीपोरा-१५ हाई और आठ हायर सेकेंडरी स्कूल, बारामुला में ३४ हाई और १४ हायर सेकेंडरी स्कूल, बडगांव में १८ हायर सेकेंडरी स्कूल, डोडा में ११, कठुआ में पांच, किश्तवाड में १३, कुलगांव में आठ, कुपवाडा में १७ हाई व २१ हायर सेकेंडरी, शोपियां में २१ और पुलवामा में ११ हायर सेकेंडरी स्कूल शामिल हैं। इसके अलावा कई हाईस्कूलों में भी स्लीपर सेल अपनी गतिविधियां संचालित कर रहे हैं।
जांच एजेंसियों के अनुसार, स्कूलों में चतुर्थ श्रेणी स्टाफ का स्लीपर सेल के तौर पर उपयोग किया जा रहा है। कई जगहों पर अध्यापक भी आतंकी संगठनों के संपर्क में हैं। इसके अलावा कुछ ड्राइवर-कंडक्टर स्लीपर सेल बने हैं। स्कूलों से बाहर, लोक निर्माण विभाग, वन विभाग, परिवहन, श्रम विभाग और मंडी जैसे विभागों में बडे स्तर पर स्लीपर सेल बनाए जा रहे हैं। आतंकियों को सबसे बडी मदद परिवहन विभाग से मिल रही है।
अलगाववादी नेता इन विभागों और आतंकी संगठनों के बीच की कडी का काम करते हैं। एनआईए, जम्मू-कश्मीर पुलिस, सेना, अर्धसैनिक बल, आईबी, रॉ, एनटीआरओ और ईडी जैसी एजेंसियों को संयुक्त तौर से इस ऑपरेशन में लगाया गया है।